Inspiration, Influence and Copy – Don’t get trapped!
ये ब्लॉग किसी का मजाक उड़ाने के लिये नहीं है न कोई कटाक्ष। और ये डिस्क्लेमर इसलिये है ताकि कोई इस आशय के कमेंट न करें। थोड़ी लंबी है लेकिन युवा मित्रों के शायद काम की है।
ये कई बरसों का मेरा ऑब्जरवेशन है कि हमें वो सब करना है जो दूसरा कर रहा है। होता हर उम्र के लोगों के साथ है लेकिन मैं खासकर युवाओं के लिये ही यहाँ बात करना चाहता हूँ क्योंकि एक तो वो मुझे ज्यादा मिलते हैं पर्सनल और प्रोफेशनल लेवल पर, दूसरा उनमें सीखने की गुंजाइश ज्यादा है।
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हमारे कई इमोशन्स होते हैं जिनमें अच्छा करना (नौकरी या व्यवसाय), अच्छा दिखना, प्रसिद्ध होना है और सोशल मीडिया के दौर में अपनी एक छवि गढ़ना भी शामिल है। हम कुछ लोगों को बहुत अच्छा लिखते देखते हैं और हमें भी लिखना होता है। इसी में कोई छवि गढ़ने को लिखता है तो हम भी ऐसे ही मुद्दा धर लेते हैं। किसी का ड्रेसिंग स्टाइल पसंद आता है तो वैसा करना है।
यहाँ तक कोई समस्या नहीं है क्योंकि हम सब किसी न किसी से सीखते हैं या प्रेरणा लेते हैं। समस्या इसके बाद है। मैने नौकरी में रहते हुए नहीं नहीं करते भी पूरे कैरियर में 1000-1200 लोगों के इंटरव्यू लिये होंगे और कुल मिलाकर 40 से ज्यादा hire नहीं किये यानि सफलता का प्रतिशत 4% के करीब।
ऐसे कई कैंडिडेट जो योग्य लगते थे (कुछ होते भी थे) या उन्हें लगता था कि वो योग्य हैं उनका सेलेक्शन न होने का कारण यही था कि वो ओरिजिनल नहीं था। उनके विचार, स्टाइल सब कहीं न कहीं से प्रभावित था। इंटरव्यू लेते वक्त हमें अक्सर ये दिख जाता है क्योंकि विचारों में क्लैरिटी नहीं होती।
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उदाहरण देता हूँ। एक डिज़ाइनर का cv आया। काफी शानदार बना था, मैंने नोटिस किया कि गहरे हरे रंग का काफी प्रभाव था। इंटरव्यू में मैंने उसे पूछा कि क्या कारण है कि उसने cv रंगीन बनाया और इस रंग को इस्तेमाल करने की खास वजह। ध्यान दें कि वो डिज़ाइनर था इसलिए डिज़ाइन और रंग के पीछे एक सोच होगी। उसका जवाब था कि ऐसे ही कर दिया। मैंने और कुरेदा तो जवाब मिला कि बाकी डिज़ाइनर को उसने ऐसे cv बनाते देखे।
उस लड़के ने जो रंग और डिज़ाइन चुना था उससे मैं उसे रख लेता लेकिन उसे पता ही नहीं था कि जो किया वो क्यों किया। जो सबने किया ये अलग क्या करेगा? रिजेक्टेड।
मैं फिर कहूँगा की प्रभावित होना बुरा नहीं, उनकी अच्छी बातें अमल करना भी बुरा नहीं। बुरा है उनकी उस चीज को कॉपी करना जो आपको अच्छी लग रही है लेकिन आप वो नहीं हैं।
ये कैरियर की बात हुई, अब दूसरी बात है छवि गढ़ने की। हम मार्केटिंग वाले उसे पर्सनल ब्रांडिंग / इमेज बिल्डिंग कहते हैं। यहाँ भी हम प्रभावित होते हैं, कॉपी करते हैं लेकिन फिर वही सवाल है कि क्या आप वो हैं जो आप कॉपी कर रहे हैं? ये समस्या सोशल मीडिया के दौर में ज्यादा गहरी हुई है।
एक युवती को इंटेलेक्चुअल दिखना है। मुझे पता नहीं उसे दिखना था या नहीं पर जिस सर्किल में वह सोशल मीडिया पर रहती है, उसमें कई लोग किताबें पढ़ते हैं और लेखकों से परिचय है। जब किसी किताब की चर्चा होती है तो वह उस किताब को न सिर्फ पढ़ने की इच्छा जाहिर करती है बल्कि खरीदती भी है। अब मजेदार ये है कि किताबें खरीदने के बावजूद उसने उनमें से एक भी किताब नहीं पढ़ी है। ये आप समझ जाते हैं जब चर्चा के दौरान आप पाते हैं कि उसे किताबों की पता ही नहीं, पात्रों के बारे में ख़बर नहीं। फिर उसने किताब क्यों खरीदी? क्योंकि उस सर्कल में उसे फ़ोटो लगानी होती है कि मेरे पास है किताब। उस सर्कल में स्वीकार्यता बढ़ाने के लिये उसे दर्शाना है कि she is an avid reader. थोड़े दिनों बाद उसे किसी और को कुछ और क्रिएटिव करते देख वही करना होता है और इसके लिए भी वह सब कुछ इकट्ठा कर लेती है मगर करती नहीं। अब देखिये उसे नहीं पता लेकिन उसके इंटेलेक्चुअल या क्रिएटिव होने के बारे में उसके उस पूरे सर्किल को अब संदेह हैं। उसे कई बार चर्चाओं में इग्नोर किया जाता है तो उसे बुरा भी लगता है।
आपकी स्वीकार्यता उस सर्किल में क्यों बढ़ानी जो आपका है नहीं? क्या सिर्फ इसलिए कि वो कूल लगता है? यदि बढ़ानी भी है तो क्या सिर्फ यही एक तरीका है? आपके पास अपना एक हुनर होगा, क्या आप इन किताब पढ़ने वालों की चर्चा से ‘डिटेलिंग’ नहीं सीख सकते हैं जिसे अपने काम में इस्तेमाल करें?
एक युवक को सभी प्रसिद्ध लोगों भाई बनना है। जब उसकी बात सुनता हूँ तो समझ आता है कि सीखना सुनना उद्देश्य नहीं है। वह एक बहुत कनेक्टेड और इंटेलिजेन्ट आदमी की छवि गढ़ना चाहता है और इसके लिए वह इन सब भाइयों की name dropping करता है। उनकी किसी और से हुई बातें इस अंदाज में सुनाता है जैसे इतनी बात उसी से हुई। उसका यह name dropping सबको नजर आने लगा। अब उसे कई बार बुरा लगता है कि ‘भैया/दद्दा’ इग्नोर कर रहे हैं।
यह युवक अपना बिजनेस करता है और संभवतः ठीक करता है। हाँ ग्लैमरस बिजनेस नहीं है लेकिन वह उसकी समझ रखता है। उसे इस सर्किल में इन जैसा क्यों बनना है? वह जो है अगर वही रहे तो मैं उससे 2 नई बातें सीखने में इच्छुक होऊंगा क्योंकि बिजनेस की मुझे समझ नहीं।
ये समझिये कि हम सब खास हैं। हमें अपनी ताकत और कमजोरी का आंकलन करके उस पर काम करना है। कुछ लोग जो बेहतर कर रहे हैं हम उनसे सीख सकते हैं। वो क्या करते हैं, कैसे करते हैं जान सकते हैं, समझ सकते हैं लेकिन उसके बाद इम्पलीमेंटेशन तो अपनी जरूरत और अपने हिसाब से करें।
चलते चलते आखिरी किस्सा। एक दिन मुझे मेरी एक क्लासमेट से मिलना था और कुछ अन्य दोस्तों से भी। दोनों को एक ही जगह बुला लिया। मेरी क्लासमेट कस्टम में एसपी थी और 2 दिन पहले ही उसने स्मगल करते पकड़ा था। मेरे बाकी दोस्त पत्रकार थे। जब मेरी क्लासमेट से वो मिले तो उत्साहित हो उठे और उससे उन्होंने बहुत सारे सवाल किये। उन्हें अच्छा लग रहा था कि पहली बार किसी कस्टम के अधिकारी के साथ हैं। उधर मेरी क्लासमेट इसलिये भावविह्वल थी कि जिन लोगों को वो tv पर देखती है या पढ़ती है वो सब लोग उसके साथ कॉफ़ी पी रहे हैं और उसके बारे में जानना चाहते हैं।
इस पूरी मुलाकात में उसने पत्रकारों के काम करने के तरीके को समझा और पत्रकार मित्रों ने उससे उसके काम के तरीके को जो फिल्मों से अलग है। इतना प्रभावित होने के बाद भी न मेरी दोस्त ने पत्रकार बनने की कोशिश की न मेरे पत्रकार दोस्तों ने बॉण्ड बनने की। सबने सिर्फ सीखा।
प्रभावित होइये, सीखिये लेकिन व्यक्तित्व अपना बनाइये और वही बनाइये जो आप हैं।