आज अखबार में बलात्कार से जुड़ी एक खबर पढ़ रहा था जिसमें बताया गया कि राजस्थान और चंडीगढ़ में बलात्कार की सबसे ज्यादा घटनाएँ दर्ज हुई हैं। चंडीगढ़ पढ़ना कुछ अजीब लगा क्योंकि उस शहर को मैंने अलग रूप में देखा है। उसी उत्सुकता में मैंने आंकड़ों को खोजना शुरू किया। महिलाओं से जुड़े तमाम तरह के अपराधों के आंकड़े थे। अभी बलात्कार वाला विषय हम सबके लिए गरम है इसलिए आज उसकी ही बात करता हूँ।
देश में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र ऐसे राज्य हैं जहाँ सबसे ज्यादा बलात्कार की घटनाएँ दर्ज होती है। महिलाओं के लिए सुरक्षित माना जाने वाला मुंबई महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में दिल्ली के बाद दूसरे नंबर पर आता है। बलात्कार के बाद हत्या के सबसे ज्यादा मामले देश में महाराष्ट्र से आते हैं। हाल में जब हाथरस का मुद्दा गर्म है उसी समय राजस्थान में भी 2 बड़ी घटनाएँ होती हैं। मध्य-प्रदेश में भी कुछ घटनाएँ हैं। हम इन सबको देख ही रहे होते हैं कि उत्तर प्रदेश के ही बलरामपुर से एक और मुद्दा आता है।
हम सब लोग अपराध के खिलाफ हैं, उसके प्रति गुस्सा है लेकिन यह गुस्सा जाहिर करने से पहले हम एक ही तरह के अपराध को कई नजरिए से देखते है। हमें देखते हैं कि अपराध जिस राज्य में हुआ वहाँ सरकार किसकी है, हमें देखना है कि अपराधी कौन से धर्म का है, हमें देखना है कि पीड़ित का धर्म / जाति क्या है। जब हम इन सब में टिक मार लेते हैं तब तय करते हैं कौन सा वाला बलात्कार हमें उद्वेलित करेगा। कौन सा वाला बलात्कार हमारे सोशल मीडिया पर लाइक ज्यादा लाएगा। अगर हम लेखक हैं तो ये भी देख लेते हैं कि जिसकी हम चमचागिरी स्टेज पाने के लिए कर रहे हैं उसे कैसा पोस्ट पसंद आएगा। जब यह सब हो जाता है तो हम अपना पोस्ट लिखते हैं। हम पोस्ट लिखते हैं कि केस झूठा है, सरकार बिचारी क्या करेगी। हम पोस्ट लिखते हैं ऐसी सरकार चुनोगे तो यही होगा।
हमें बलात्कार से फर्क नहीं पड़ता। जनता हो, पुलिस हो, नेता हो, न्यायालय हो, मीडिया हो किसी को भी इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क सिर्फ उसे पड़ता है जिसके साथ यह अपराध हुआ। बाकी सबके लिए बलात्कार एक अपराध नहीं राजनैतिक मुद्दा है, सोशल मीडिया पर लाइक लेने का, वैबसाइट के हिट्स बढ़ाने, चैनल की टीआरपी बढ़ाने का जरिया है। हो सकता है जाने-अनजाने मैं भी यह पोस्ट इसीलिए लिख रहा होऊँ।
हम हाथरस के साथ बलरामपुर का मुद्दा उठाते हैं लेकिन फिर धीरे से चुप हो जाते हैं। बाकी राज्यों में हाल ही में हुई ऐसी घटनाओं की तो बात ही नहीं करते। इन्हीं में से एक राज्य मुख्यमंत्री कल ट्वीट करके कहते हैं कि हमारे यहाँ के बलात्कार के मुद्दे की तुलना फलानी जगह से मत कीजिये। हमारा मामला अलग है। जी हाँ उनके यहाँ का बलात्कार का मुद्दा इसीलिए अलग है, क्योंकि उनके और हमारे बलात्कार के टिकबॉक्स में कुछ सवाल एक से हैं।
चूंकि वो सरकार हैं इसलिए उनका एक महत्वपूर्ण सवाल है कि मरी तो नहीं? अरे नहीं मरी न, तो ठीक है। दलित नहीं थी, अच्छा ठीक है, गरीब भी नहीं थी, वेरी गुड। क्या कहा बलात्कारी फलानी जाति या धर्म से नहीं। तब तो सब ठीक है। फिर क्यों परेशान हो रहे हो? सुनो भैया, हमारे यहाँ वाला बलात्कार तुम्हारे यहाँ से बेहतर है।
जिस देश में रोज 87 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं उस देश की जनता, मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग सिर्फ तब जागता है जब मामला राजनैतिक बनाने लायक हो या पीड़ित महिला की क्रूरता से हत्या हो जाए या वो मर जाए। हम दिल्ली के निर्भया पर जागते हैं, हम आसिफा की हत्या पर जागते हैं, हैदराबाद में पीड़िता को जलाने पर जागते हैं, हम हाथरस की गुड़िया के मरने पर जागते हैं। लेकिन रोज उन आने वाले उन 87 मामले और न आने वाले जाने कितने मामलों के लिए नहीं जागते हैं। हम निर्भया, आसिफा, गुड़िया के आंदोलन को वहीं खत्म कर देते हैं और इंतजार करते हैं आवाज़ फिर उठाने के लिए किसी और के निर्भया बनने का क्योंकि हमें शायद पता ही नहीं हमें खून का स्वाद पसंद है।
P.S. पिछले काफी समय से मैंने धीरे-धीरे इन मामलों में अपना गुस्सा सोशल मीडिया पर जाहिर करना कम कर दिया है क्योंकि मुझे लगने लगा है कि मैं नया क्या कर रहा हूँ? बस वही लाइक पाने का ही तो एक प्रयास कर रहा हूँ बाकियों की तरह। लेकिन जब अपने साथियों को टिकबॉक्स के हिसाब से लिखते देखता हूँ तो दिल दुखता है। जब दोनों तरफ के लोगों पर सवाल उठाओ तो दोनों तरफ से लोग आते हैं अपने आंकड़े लेकर और परास्त होने पर कहते हैं अभी यह बात करने का क्या फायदा। सही बात है, यह समय तो खून का स्वाद लेने का है और स्वाद लेते समय लोगों की नीयत पर सवाल क्यों उठाना।