Decoding Sheena Bora Muder Case

Sheena bora murder case

Indrani Mukherjee was accused of Sheena Bora murder case. Indrani Mukerjea wrote an autobiography claiming that Sheena Bora is not murdered, she is alive and living in America. Read my blog about this sensational murder case where victim Sheena Bora’s mother Indrani Mukherji is accused. You can listen my podcast on this muder case as well through link below.

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25 August 2015 को एक बहुत सेन्सैशनल खबर आई। inx की हेड इंद्राणी मुखर्जी को अपनी पहली बेटी शीना बोरा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। पूरा देश हैरान था कि एक माँ पैसों के लिये अपनी बेटी की हत्या कैसे कर सकती है? इस हत्या की खबर मीडिया के लिये लोटरी सी थी क्योंकि इंद्राणी मुखर्जी की कहानी में इतना मसाला था कि खबर में डालो तो TRP नई ऊंचाई छू रहा था।

(इस आर्टिकल को आप यूट्यूब पर भी देख सकते हैं। )

आप सोच रहे होंगे कि 8 साल पुरानी इस खबर की चर्चा आज क्यों? आज हम इस खबर की नहीं बल्कि एक किताब की चर्चा कर रहे हैं जिसे जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद इंद्राणी मुखर्जी ने लिखा है। इस किताब का नाम है – अनब्रोकन: द अनटोल्ड स्टोरी

आज इस किताब की चर्चा के साथ हम इस केस की भी बात करेंगे क्योंकि ये किताब इंद्राणी मुखर्जी ने असल में खुद पर लगे तमाम आरोपों पर अपना पक्ष रखने को लिखा है। हर विवादित व्यक्ति की आत्मकथा या मेमोयर जब लिखे जाते हैं या biopic जब बनती है तो प्रायः उनका उद्देश्य खुद को साफ और परिस्थितियों का मारा दिखाना होता है। हमने ऐसा संजु फिल्म में देखा है। तो चलिये इस किताब के कंटेन्ट को पढ़ते हुए समझने की कोशिश करते हैं कि क्या देखते हैं कि वह इस किताब में वह अपना पक्ष रखती हैं या सिर्फ विक्टिम कार्ड खेलती हैं?

(इस आर्टिकल को आप Spotifyपर भी सुन सकते हैं। )

शीना बोरा मर्डर केस के इतना सेन्सैशनल बनने के पीछे 5 कारण थे:

  1. पहला कारण, जिस समय इंद्राणी मुखर्जी को गिरफ्तार किया गया तब वह INX मीडिया की हेड थी और स्टार टीवी के पूर्व सीईओ पीटर मुखर्जी की पत्नी थी। मीडिया इंडस्ट्री के पॉवर कपल पर ये आरोप निश्चित तौर पर खबर बनाना ही था।
  2. दूसरा कारण, यह हत्या एक माँ द्वारा अपनी बेटी की की गई हत्या थी जिसमें उसके सहअभियुक्त इंद्राणी के पूर्व पति संजीव खन्ना थे। इस मामले का खुलासा संजीव खन्ना के ड्राइवर श्यामवर राय के बयान के आधार पर हुआ था जिसने कहा कि इंद्राणी, संजीव और उसने मिलकर 2012 में, यानि गिरफ़्तारी से तीन साल पहले यह हत्या हुई थी।
  3. आपके मन में ये प्रश्न आया होगा कि कोई 3 साल से गायब है और किसी ने खोज-खबर तक नहीं ली? यहाँ आती है केस के सेन्सैशनल होने की तीसरी वजह। शीना और इंद्राणी के रिश्ते सहज नहीं थे और वह साथ नहीं रहते थे। क्यों सहज नहीं थे इस पर हम आएंगे लेकिन उससे पहले ये जान लीजिए कि शीना के पिता न पीटर थे और न संजीव। शीना का जन्म इंद्राणी और संजीव की शादी से पहले हो चुका था।
  4. चौथा कारण, इंद्राणी की गिरफ़्तारी के बाद उनके खिलाफ उनके पति पीटर, बेटे मिखाइल, समेत बहुत से पूर्व सहयोगियों और दोस्तों द्वारा बयान दिये गए। इंद्राणी की सबसे छोटी बेटी विधि ने तो इंद्राणी के खिलाफ ‘डेविल्स डॉटर’ नाम से किताब ही लिख दी थी।

 

आगे की कहानी शुरू करने से पहले आपको बताऊँ कि इंद्राणी के तीनों बच्चों के पिता अलग-अलग थे, इनमें शीना और मिखाइल बिना शादी के और विधि संजीव खन्ना से शादी होने के बाद हुई जिसे 4 साल की उम्र में पीटर मुखर्जी ने अपना नाम दिया और विधि खन्ना विधि मुखर्जी बन गई।

शीना बोरा इंद्राणी की पहली संतान थी और मेरे ख्याल से बहुत बदकिस्मत भी। हालांकि शीना का जन्म इंद्राणी के लिये भी किसी ट्रॉमा या हादसे से कम नहीं था क्योंकि इंद्राणी के पिता उपेन्द्र बोरा ही शीना के पिता थे। यानि इंद्राणी अपनी ही बेटी की माँ और बहन दोनों थी। इंद्राणी अपनी किताब में बताती हैं कि जब वह 14 साल की थी तब उनके पिता ने शराब के नशे में उनके साथ बलात्कार किया। इस घटना के बाद इंद्राणी की माँ ने मामले को रफा-दफा करके उन्हें पढ़ने को नानी के घर भेज दिया।

2 साल बाद पिता के माफी मांगने पर इंद्राणी वापस आई और एक पारिवारिक मित्र और बेहद आकर्षक युवा विश के साथ संबंध में रही। इंद्राणी बताती हैं कि उनके पिता ने एक बार फिर इंद्राणी के साथ यह कह कर बलात्कार किया कि विश में क्या रखा है, उन्हें असली मर्द चाहिये। इंद्राणी इस समय 16 वर्ष की थी और उन्होंने इस घटना को विश के साथ साझा किया। विश चूंकि पारिवारिक मित्र था, उसके परिवार ने इंद्राणी की माँ के साथ दबाव डालकर इंद्राणी के पिता को घर छोड़ने के लिये मजबूर किया।

मगर किस्मत का खेल देखिये, इंद्राणी को 14 हफ्ते के बाद पता लगता है कि वह प्रेग्नेंट है और अब अबॉर्शन नहीं हो सकता। यह सोचकर ही कितना अजीब लगता है कि जिस पिता से सुरक्षा की उम्मीद थी वही पिता भक्षक बन गया। जिस बच्चे की वह माँ बनने वाली थी उस बच्चे के पिता उनके खुद के पिता थे। इस पूरे घटनाक्रम में हमारे समाज का एक नंगा चेहरा सामने आता है जहाँ परिवारों में होने वाले यौनिक अपराधों को सिर्फ इज्जत बचाने की खातिर दबा दिया जाता है।

खैर, इंद्राणी की प्रेग्नेंसी की खबर के साथ विश ने इंद्राणी का साथ छोड़ दिया। इंद्राणी मेंटल ट्रॉमा से गुजर रही थी और उन्हें ‘इज्जत की खातिर’ कहीं और शिफ्ट करने की तैयारी हो रही थी लेकिन तभी इंद्राणी के दोस्त सिद्धार्थ दास ने मदद का हाथ बढ़ाया। इंद्राणी जब 2 साल नानी के यहाँ पढ़ रही थी तब सिद्धार्थ उनका दोस्त बना था। इंद्राणी सिद्धार्थ के लिये बार-बार लिखती हैं कि वह एक औसत दिखने वाला और औसत परिवार का लड़का था। इस बात का जिक्र मैं यहाँ जान-बूझकर कर रहा हूँ क्योंकि इस बात का मतलब हमें आगे दिखेगा।

सिद्धार्थ ने प्रस्ताव रखा कि वह इस बच्चे को अपना नाम देगा और इंद्राणी के 18 का होने पर उससे विवाह करेगा। सिद्धार्थ के पिता नहीं थे, उसने अपनी माँ को मनाया और यही कहा कि यह उसका बच्चा है। सिद्धार्थ सब कुछ छोड़कर इंद्राणी के साथ रहने लगा। अब इंद्राणी को घर छोड़ किसी और शहर में जाने की जरूरत नहीं थी, बस लोग उसके 16 साल में बिनब्याहे माँ बनने की बात करते लेकिन उसके ‘पिता की इज्जत’ बच गई। घर का राज घर में ही रह गया।

सिद्धार्थ के बारे में इंद्राणी फिर लिखती हैं कि वह उन्हें पसंद नहीं था लेकिन बहुत प्यारा दोस्त था। शीना के जन्म के 6 महीने बाद इंद्राणी फिर प्रेग्नेंट होती हैं और इस बार सिद्धार्थ होने वाले बच्चे का पिता है। इंद्राणी एक लड़के को जन्म देती हैं जिसका नाम मिखाइल रखा गया।

इंद्राणी मुखर्जी इस किताब में पूरा प्रयास करती हैं कि उनके ऊपर लगे दाग को साफ हो जाएं। किताब कई जगह उनके साथ सहानुभूति उत्पन्न करती है, वहीं कई सवाल भी खड़े करती है। किताब में कई जगह इंद्राणी मुखर्जी के कथन और व्यवहार के बीच एक जबरदस्त विरोधाभास दिखता है।

शादी की तैयारियां जोर पर हैं लेकिन इंद्राणी उस सिद्धार्थ से शादी नहीं करना चाहती जो 2 साल से अपना सब छोड़कर उनके साथ रह रहा है एक बच्चे को अपना नाम दे चुका और दूसरे का पिता है। वजह – क्योंकि इंद्राणी को लगता है कि वह उसे पसंद नहीं करती। इंद्राणी की माँ इस बीच इंद्राणी के पिता को माफ करके वापस घर भी ला चुकी हैं। इंद्राणी अब उनके साथ नहीं रहना चाहती लेकिन वह सिद्धार्थ के साथ शादी भी नहीं करना चाहती।

इंद्राणी अपनी किताब में बहुत जोर शोर से यह दावा करती हैं कि मीडिया ने उनके खिलाफ इसलिए लिखा क्योंकि वह महत्वाकांक्षी हैं और सुंदर हैं। मीडिया ने उन्हें गोल्ड डिगर की उपाधि भी दी जिसका उन्होंने पुरजोर रूप से खंडन किया है।

मीडिया यह आरोप संभवतः इसलिये लगाता है क्योंकि 14 वर्ष की आयु से अब तक इंद्राणी जिन जिन पुरुषों की तरफ आकर्षित हुई या शादी की उनमें कुछ समानताएं लगातार दिखती है। सभी सुंदर और अमीर हैं जिनमें विश भी शामिल है जो उनसे 9 साल बड़ा था। इंद्राणी यह बताने का प्रयास करती हैं कि किसी अच्छे दिखते इंसान को पसंद करना स्वाभाविक है और चूंकि वह अमीर भी है सिर्फ इसलिए गोल्ड-डिगर का आरोप समाज की मानसिकता को दर्शाता है लेकिन यहीं पर कुछ विरोधाभास नजर आते हैं और यह विरोधाभास खुद उनकी किताब में दिखते हैं।

इस विरोधाभास की बात करने से पहले इंद्राणी की आगे की जिंदगी में आने वाले पुरुष की बात करते हैं। इंद्राणी के घर छोड़ने के फैसले पर उनकी माँ ने शीना और मिखाइल को गोद ले लिया और उन्हें दुनिया को इंद्राणी के भाई-बहन के रूप में दिखाया। इंद्राणी को भी यही कहने को कहा गया।

इंद्राणी आगे की पढ़ाई के लिये कोलकाता आती हैं और काफी तंगी से गुजरती है। अपने खर्चे चलाने को इंद्राणी diners club में सेल्स का काम करती हैं और काफी सफल होती हैं। इसी दौरान उनकी मुलाकात संजीव खन्ना से होती है। संजीव भी अच्छा दिखता है और अमीर बिजनेस फॅमिली से है। दोनों शादी करते हैं। शादी के समय तक इंद्राणी एक कंप्युटर ट्रेनिंग कंपनी में ठीक पद पर आ चुकी हैं। संजीव को इंद्राणी बेहद चाहती हैं क्योंकि वह भी सब जानते हुए उन्हें अपनाता है, बिचारे सिद्धार्थ की किस्मत ऐसी न थी।

अब मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा उस पॉइंट की तरफ फिर से जहाँ इंद्राणी ने शुरू से ही सिद्धार्थ दास के अनाकर्षक और अमीर न होने का जिक्र किया। इंद्राणी ने सिद्धार्थ का तब विरोध नहीं किया जब वह सब छोड़कर उनके पास आया लेकिन बीच-बीच में उसको लेकर अपनी नापसंदगी जाहिर की। इंद्राणी किताब की शुरुआत से खुद को बहुत सुंदर, बहुत प्रभावशाली और इन्टेलिजन्ट दर्शाने की कोशिश करती हैं। संभवतः वह पाठकों के दिमाग में सिद्धार्थ की यह छवि बनाकर उनसे ये मनवाना चाहती हैं कि सिद्धार्थ को छोड़ने का उनका निर्णय ठीक था।

मैं यहाँ पर बेनेफिट ऑफ डाउट देना चाहता हूँ लेकिन आगे की घटनाएं मेरे इस विचार को पुष्ट करती हैं कि इंद्राणी रिश्ते दिल से नहीं दिमाग से चुनती थी लेकिन उसे नाम उन्होंने प्यार का ही दिया। यहीं से उनके कथन और व्यवहार का फर्क दिखता है।

इंद्राणी और संजीव खन्ना के रिश्तों में बिखराव की शुरुआत संजीव की बिजनेस में असफलता के साथ ही शुरू होती है और इंद्राणी इसका आरोप पूरी तरह से संजीव पर ही डालती हैं। संजीव को अपने बिजनेस के लिये जमशेदपुर आना पड़ा और इसलिए इंद्राणी कोलकाता की नौकरी छोड़कर उनके साथ रहने आती हैं। इंद्राणी कहती हैं कि संजीव बिजनेस में असफल होने पर उनसे लड़ता था और इंद्राणी जो नौकरी या बिजनेस करना चाहती थी उसे यह कहकर नहीं करने देता कि यहाँ हमारी सोसाइटी में कोई महिला नौकरी नहीं करती। एक असफल आदमी ऐसी हरकतें कर सकता है लेकिन सोचिये कि उसी संजीव खन्ना से शादी के बाद इंद्राणी कोलकाता में सुबह 8 से शाम 6 की नौकरी करती थी और किसी को दिक्कत नहीं थी। आखिर संजीव को अब क्यों दिक्कत आई? ये दूसरी बार मुझे विरोधाभास नजर आता है इंद्राणी की बातों में और शक होता है कि कहीं यहाँ भी तो इंद्राणी सिद्धार्थ वाला मॉडेल तो नहीं अपना रही कि अपनी बात बताओ और सामने वाले को गलत कहो।

इंद्राणी ने इसके बाद अपना HR consultancy का बिजनेस शुरू किया लेकिन ये बता दूँ कि इस बिजनेस के लिये संजीव के छोटे भाई और संजीव के चाचा जो परिवार के मुखिया भी थे उनका पूरा सहयोग था। चाहे वह knowledge sharing हो या ऑफिस के लिये जगह देना। इंद्राणी सफल हो गई थी, पैसा आ रहा था और खुद का घर खरीद चुकी थी।

गोल्ड डिगर वाले आरोप पर इंद्राणी का एक और विरोधाभास तब नजर आता है जब वह स्टार टीवी के सीईओ पीटर मुखर्जी से मिलती हैं। इंद्राणी पीटर मुखर्जी से मुलाकात के दौरान उनके लुक्स से अप्रभावित होती हैं बल्कि उनके निकले पेट और कम बालों का हल्का मजाक भी उड़ाती हैं। इंद्राणी कहती हैं कि पीटर पहले दिन से उन पर ट्राइ कर रहे थे। वह उन्हें स्टार टीवी के HR head से काम दिलवाने को मिलाते हैं और इंद्राणी से ऑफिस के बाहर भी एक बार मिलते हैं। इस 8 घंटे कई ओवर द ड्रिंक्स मुलाकात में पीटर उन्हें अपनी पहली शादी, बच्चों के बारे में बताते हैं। इस बातचीत में इंद्राणी के साथ पाठकों को पता लगता है की पीटर ने पहली पत्नी और उनके बच्चों को विदेशों में घर दिये हुए हैं, उनकी खुद की भी काफी प्रॉपर्टी है। इस मुलाकात के बाद अचानक इंद्राणी को उस निकले पेट वाले व्यक्ति में जिससे वह मिलना नहीं चाहती, बहुत सी समानताएं दिखने लगती हैं। वह उन्हें अपनी तरह का व्यक्ति लगता है जिससे शादी की जा सकती है। बस कुछ समय में इंद्राणी संजीव से तलाक लेकर पीटर की पत्नी हो चुकी हैं।

अब सवाल उठता है कि इंद्राणी ने शीना को क्यों मारा? इस बात के कहीं सबूत नहीं कि इंद्राणी ने शीना को मारा लेकिन पुलिस का आरोप है कि इंद्राणी शीना से एक तो कुछ पैसों का विवाद था, दूसरा इंद्राणी को शीना और राहुल मुखर्जी का रिश्ता पसंद नहीं था। राहुल पीटर मुखर्जी का छोटा बेटा था। यानि अब सौतेले भाई-बहन रिश्ते में थे। इंद्राणी इस आरोप को नकारती हैं और कहती हैं कि शीना के अकाउंट में मात्र लाख रुपये थे जो हत्या की वजह हो नहीं सकते और उन्हें राहुल से जरूर दिक्कत थी क्योंकि वह कोई काम नहीं करता था। यदि इस रिश्ते की वजह से उन्हें मारना होता तो राहुल को मारती न कि अपनी बेटी को। उनका ये तर्क ठीक लगता है लेकिन फिर बात वही कि ये तर्क उनका है।

मैंने पहले कहा कि कोई भी व्यक्ति किताब अपनी छवि को साफ करने के लिये लिखता है। किताब पढ़ने के बाद मेरा यही मानना है कि इंद्राणी ने भी यही किया लेकिन उनका जीवन इतना पब्लिक था कि कई चीजों की सफाई देते हुए विरोधाभास नजर आने लगे। इस किताब में एक पैटर्न नजर आता है कि इंद्राणी ने इस किताब का इस्तेमाल हर उस व्यक्ति की छवि को धूमिल या कमजोर करने में किया है जो उनके खिलाफ हुए। वह किताब में पाठकों के लिये उन लोगों के प्रति नकारात्मक भाव बनाने के लिये शुरू से नेरटिव सेट करती हैं। हम सिद्धार्थ और संजीव के मामले में देख चुके और यही बात पीटर और राहुल के मामले में भी होती है। वह लगातार राहुल को नाकारा साबित करती हैं और अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने को हर उस मौके पर उसके बड़े भाई रेबिन की तारीफ करती हैं।

गिरफ़्तारी के बाद पीटर मुखर्जी ने इंद्राणी के खिलाफ बयान दिये और उनके पैसे भी हड़पे ऐसा आरोप इंद्राणी लगाती हैं। हालांकि इस मर्डर केस में बाद में पीटर को भी साजिश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इंद्राणी शादी से पहले ही पीटर के धोखेबाजी के स्वभाव को बताती हैं, वह खुद उन धोखेबाजियों को शिकार होती हैं। ये सभी सिग्नल थे कि पीटर उनके लिये ठीक नहीं, इंद्राणी शादी रोक सकती थी लेकिन तमाम धोखों के बावजूद उन्होंने शादी की। फिर से याद दिला दूँ कि पीटर तब स्टार टीवी के सीईओ और देश के प्रभावशाली मीडिया पर्सनैलिटी थे।

इंद्राणी अपने पति संजीव खन्ना को छोड़ने की वजह ये बताती हैं कि इंद्राणी अपना काम करके पहचान बनाना चाहती थी जिसे संजीव ने स्वीकार नहीं किया और इंद्राणी के लिये खुद को स्थापित करना ज्यादा महत्वपूर्ण था लेकिन वहीं इंद्राणी पीटर मुखर्जी के साथ शादी करती हैं और जब पीटर रिटायरमेंट लेकर विदेश में सेटल होने की बात करते हैं तो वही इंद्राणी अपने बिजनेस और अन्य सभी चीजों को छोड़कर उनके साथ जाने को तैयार हैं। दोनों घटनाओं के बीच समय का फर्क अधिक नहीं है। वह लिखती भी हैं मैं चाहती तो बिजनेस में ऐसा भी कर सकती थी, मेरे पास यह भी हो सकता था लेकिन फिर भी मैंने पीटर को चुना। वो पीटर को भी वैसे ही चाहती हैं जैसे संजीव को चाहती थी। फर्क इतना है कि संजीव और सिद्धार्थ को छोड़ने की उन्होंने वजहें तो बताई लेकिन पीटर के शादी से पहले ही दिये धोखों के बावजूद उनसे शादी की। पीटर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति निश्चित तौर पर इन दोनों से कई गुना बेहतर थी।

इंद्राणी किताब में वीर संघवी, शोभा डे इत्यादि हर व्यक्ति की कमियाँ गिनाती हैं जिन्होंने उनके खिलाफ बोला। ये लोग तो फिर भी उनके जानने वाले थे लेकिन इंद्राणी तत्कालीन मुंबई कमिश्नर राकेश मारिया को भी नहीं छोड़ती और आरोप लगाती हैं कि वह सिर्फ एक सिलेब्रिटी केस अपने रिटायर होने से पहले निपटाना चाहते थे। इंद्राणी ने गिरफ्तार होने पर सभी पुलिस के संपर्क घुमाये थे लेकिन उससे राकेश मारिया को फर्क नहीं पड़ा था।

इंद्राणी की तमाम सफाइयों के बीच उनकी छोटी बेटी विधि मुखर्जी (जो संजीव खन्ना से उत्पन्न हुई) की किताब डेविल्स डॉटर का जिक्र जरूरी हो जाता है। जहाँ एक तरफ इंद्राणी अपने हर उस कार्य जिन पर सवाल थे उनको सही साबित करने का प्रयास करती हैं, अपने से दूर की गई पहली बेटी शीना बोरा के लिये उठे दर्द को भावुक तरीके से बताती हैं वहीं विधि अपनी किताब में लिखती हैं कि वह अपनी माँ को नहीं समझ पाई। उन दोनों के बीच तमाम विषयों पर मतभेद रहे और इंद्राणी का दबाव उसने महसूस किया। यह इंद्राणी मुखर्जी द्वारा बनाई छवि के विपरीत है। विधि कहती हैं कि उनकी किताब माँ को लिखी एक लंबी चिट्ठी है क्योंकि वह खुद उन्हें जानना चाहती है। गौरतलब है विधि की किताब को छपने से रोकने के प्रयास हुए थे किंतु इंद्राणी किताब में कहती हैं कि उन्हें किताब से कष्ट तो था लेकिन वह अपनी बेटी को उसका दर्द बयां करने देना चाहती थी। यह विरोधाभास का एक और उदाहरण है।

शीना बोरा केस में पौने 7 सात साल जेल में काटने के बाद इंद्राणी अब जमानत पर हैं क्योंकि उनके खिलाफ कोई भी मजबूत सबूत नहीं है। केस अभी चलेगा और जिस प्रकार से उनके खिलाफ कुछ ठोस नहीं है वह आरोप से बारी हो जाएंगी ऐसा लगता है। इसके बावजूद केस के दौरान अपनी बेटी की किताब का विरोध करने वाली इंद्राणी की इस किताब का अभी आना फिर से यह संदेह उत्पन्न करता है कि कहीं  इंद्राणी मुखर्जी केस का फैसला आने से पहले अपने बारे में एक सॉफ्ट ओपिनीयन तो तैयार नहीं करना चाहती हैं? सवाल यह भी उठता है कि क्या इस किताब को उन लोगों के खिलाफ भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा जो हत्याकांड के उजागर होने के बाद से इंद्राणी मुखर्जी के खिलाफ रहे। हम उन लोगों के नाम ऊपर बता चुके।

यह संदेह इसलिए भी उत्पन्न होता है क्योंकि इस पूरे मामले में इंद्राणी मुखर्जी ये दावा भी करती हैं कि शीना बोरा जिंदा है और अमेरिका में हैं। इस मामले में उन्होंने कई तर्क प्रस्तुत किये लेकिन किसी भी जाँच में यह सबूत नहीं मिले हैं। यह दावा भी एक इस मामले से छूटने के लिये एक स्मार्ट कानूनी प्रयास दिखता है क्योंकि यह संदेह केस को लंबा खींचेगा और केस पर फैसला टलता रहेगा।

इंद्राणी इस किताब को लोगों को दिये जवाब के रूप में प्रस्तुत करती हैं लेकिन इस किताब का लेखन इसे उनकी सफाई के तौर पर दर्शाता है। किताब की लेखन शैली मजबूत है, पढ़ते वक्त हर दृश्य सामने नजर आता है। चैप्टर एक थ्रिलर उपन्यास की तरह बुने गए हैं। भाषा को आसान रखा गया है जिससे गति बनी रहती है और पाठक को ‘रीडिंग प्लेजर’  मिलता है। किताब हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित और इसका मूल्य 599/- रुपये है।

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