मोर की बात

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साल 2007 की बात है. मैं आदित्य बिड़ला रिटेल लिमिटेड में राजस्थान का मार्केटिंग मेनेजर था. हम कई सारे स्टोर जयपुर में खोल चुके थे और उस दिन मालवीय नगर में दसवें स्टोर का उद्घाटन होना था लेकिन उसी दिन एक और खास लांच होना था हमारे प्राइवेट लेबल के घी का. प्राइवेट लेबल का अर्थ हुआ कि कोई सामान रिटेल स्टोर अपनी ब्रांडिंग से या अपनी मैन्युफैक्चरिंग से बेचे जैसे कि आपने बिग बाज़ार में दालें बिग बाज़ार ब्रांडिंग के पैकेट में मिल जाएँगी या रिलायंस फ्रेश में दूध दही अमूल की जगह उनके पैकेट में.

 

नए स्टोर और ऊपर से घी का भी लांच होना था तो मैं स्टोर पर ही था. सारा स्टाफ और मैं खुद सभी आने वालों को अपने घी ब्रांड के बारे में बता रहे थे कि कैसे ये मिल्कफूड से सस्ता है लेकिन क्वालिटी बेहतर है. घी पर ऑफर भी था, कईयों ने खरीदा लेकिन एक साहब को जब फ्लोर बॉय ने घी का नाम बताया तो वो डब्बे को अलट-पलट अचम्भे से देखने लगे. मैं उन साहब के पास पहुँचा और कहा बहुत अच्छी क्वालिटी का है सर और वहीँ बनता है जहाँ मिल्कफूड घी. उन्होंने कहा – देखो भाईसाहब जमाना कितनी ही तरक्की कर ले, ऐसे बड़े बड़े स्टोर जो चाहे बना लें लेकिन घी तो गाय का ही ठीक है. आज आपके कहने पे ले लेंगे तो कल को बोलोगे मोर का दूध ले लो.

 

मैं चौंका – मोर का दूध??? उनसे कुछ पूछता कि मेरी नजर फिर से घी के डिब्बे पर गयी. आदित्य बिड़ला रिटेल की जिस सुपरमार्केट के लिए मैं काम करता था उसका नाम था MORE और घी के डिब्बे पर एक तरफ अंग्रेजी में लिखा था – MORE. Ghee और दूसरी तरह हिंदी में. स्टोर के लड़के से जब उन्होंने पूछा कि ये कौन सा घी है तो लड़के ने जवाब दिया – “मोर का घी है सर, एकदम बेस्ट क्वालिटी.”

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