ठण्ड से इन दिनों सब बेहाल है लेकिन इस मौसम के अपने कुछ मजे भी है| इस मौसम में न बस की भीड़ बुरी लगती है न ही धूप| सबसे बड़ा मजा तो इस मौसम में आता है पेटू लोगो को| कई तरह की सब्जियां बाज़ार में होती है, वर्ना गर्मियों में तो घूम फिर कर लौकी, कद्दू ही आता है| चिकन का हर आयटम, सड़क किनारे मिलता 20 रुपये का चिकन सूप जिसमे चिकन नदारद होता है… इस सब के अलावा तिलपट्टी, गुड़ और गोंद के लड्डू, वह भाई, मजा ही आ जाता है|
ऐसा नहीं की सिर्फ खाने वालो की मौज है, पीने वालो को तो एक और बहाना मिल जाता है| मुझ जैसे शादी शुदा लोग ठण्ड से कांपने का बहाना करते हुए अपनी बीवी से इजाजत ले लेते है की 2 पेग रम / वोदका के तो बनते है डार्लिंग| और कुंवारों की और भी ज्यादा ऐश होती है, दोस्तों के साथ पी कर आओ और चुपचाप सो जाओ| गुस्सैल पिताजी भी डांटने के लिए रजाई से बाहर निकलने में कतराते है और बच्चा बच जाता है|
ये मौसम कुछ स्वयंघोषित जल सत्याग्रहियों का भी होता है| मेरा छोटा भाई इस मौसम में जल बचाने को लेकर बड़ा ही जागृत हो उठता है| उसके अनुसार गर्मियों में पानी की कमी होती है इसलिए वो इस समय बिना नहाये रोज 2 बाल्टी पानी बचाना चाहता है| हमने कहा की भैया बहाना छोडो, पानी गरम किये देते है, नहा लो| तुरंत कहता है – बिजली और गैस दोनों बचाइए, गर्मियों में कमी पड़ेगी| ये इकलौते नहीं है बहाना मार के नहीं नहाने वाले| एक हमारे कॉर्पोरेट सेक्टर के साथी सिर्फ इसलिए नहीं नहाते सर्दियों में की भैया गीला कच्छा सूखा नहीं| और उनका ये कच्छा 15-15 दिन तक सूखता नहीं|
एक और वर्ग है जो इस मौसम में बड़ा खुश होता है और वो है दुबले पतले लोगो का| मेरी एक पूर्व सहयोगी भावना जिसे आंधी के दिनों में अपनी जेब में 3-4 कंकर रख के चलना पड़ता है जिससे की वो हवा के साथ उड़ न जाये, उसका वजन भी गर्म कपड़ो की वजह से इन दिनों में 2-4 किलो बढ़ जाता है| हर बार ठण्ड के दिनों में वो यही सोचती है की फौज में भारती हो जाऊ, कद तो पहले से ठीक था इन दिनों वज़न भी बढ़ा हुआ है|
एक मित्र जो अपना रेस्टोरेंट चलाते है वो भी बड़े खुश दिखे| कहने लगे की भैया धंधा इन दिनों सही रहता है| लोग बर्तन न धोने पड़े इसलिए खाना खाने आ जाते है और चले भी जल्दी जाते है, अब रात को बारह बजे तक नहीं रुकना होता|
इस खुशनुमा मौसम ने एक वर्ग को दुखी भी किया है और वो वर्ग है आशिको का वर्ग| एक कॉलेज का छात्र मिला बोला भैया बहुत परेशानी है| खर्चा बढ़ गया है और मजा कम| इतनी ठंडी हवा चलती है क़ि गार्डेन में गर्लफ्रेंड के साथ बैठा ही नहीं जाता| रेस्टोरेंट ही जाना पड़ता है और खर्चा आस्मां को छू जाता है| जेबखर्च सिर्फ कॉफ़ी पीने में ही निकल जाता है| मैंने कहा – भाई पोजिटिव सोचो| ठण्ड के बहाने करीब जाओ और कहो क़ि तुम्हारे हाथ ठन्डे हो गए होंगे और हाथ पकड़ लो| वो बोला – बाबा नवीनानंद क़ि जय|
तो हो गया न ये मौसम अब ऑसम| आशिक भी खुश, दुबले पतले लोग भी खुश, पेटू भी खुश, और बिजनेसमेन भी खुश| लेकिन दुनिया में सिर्फ इतने से लोग नहीं है दोस्तों| कुछ और लोग दिखे जो सच में दुखी थे और ये लोग थे सड़क किनारे बैठे हुए भिखारी और अन्य गरीब, मजदूरी कर के रोटी कमाने वाले लोग| बाबा नवीनानंद ने आशिक को तो रास्ता सुझा दिया पर इनका क्या करे?
चलो एक काम करते है, घर में जो भी पुराना शॉल, स्वेटर, रजाई है वो इन लोगो को बाँट आते है| जब इन लोगो को आप ये गर्म कपडे देकर आओ तो मुझे जरूर बताना क़ि अब तो ये मौसम लग रहा है न ऑसम|