चूरन

ये दुनिया उसका नाम लेती है जिसने बहुत पैसा कमाया या किसी क्षेत्र में अपना नाम किया। राकेश झुनझुनवाला ऐसे ही एक व्यक्ति थे जिन्होंने शेयर मार्केट में बहुत तेजी से पैसा कमाकर नाम बनाया। वह रातों रात भारतीय मध्यवर्ग के हीरो बन गए। हिंदुस्तान का वॉरेन बफे कहलाने वाले झुनझुनवाला शेयर मार्केट का एक इंडिकेटर बन चुके थे। उनके पोर्टफोलियो में जो शेयर है वह खरीदा जाने लगा। आज 62 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी।

हम सब झुनझुनवाला जैसा बनना चाहते हैं। खूब पैसा कमाना चाहते हैं, खूब नाम चाहते हैं और इसके लिए बेतहाशा दौड़ते हैं। इतना कि असली खुशी भूल जाते हैं, सेहत बिगाड़ लेते हैं। सब बहुत सारा पैसा चाहते हैं लेकिन कोई नहीं जानता कि कितना पैसा बहुत सारा पैसा होता है। लेकिन अगर खुशी की बात करें तो खुशी थोड़ी भी बहुत होती है। खुशी और पैसे में सबसे बड़ा फर्क यही है।

मैं ये नहीं कह रहा कि राकेश खुश नहीं थे, मगर स्वस्थ तो नहीं ही थे क्योंकि उनके अस्पताल के चक्कर लग रहे थे। मैं ये भी नहीं कह रहा कि पैसा महत्वपूर्ण नहीं… पैसा काफी महत्वपूर्ण है और कई बार खुशियों को प्राप्त करने का माध्यम भी। यह याद रखना बेहद महत्वपूर्ण है कि पैसा खुशी को पाने का सिर्फ एक माध्यम है और हमेशा पैसा वह माध्यम नहीं होता। 

मुझे बचपन में रोज 1 रुपया चाहिए होता था – 50 पैसे का समोसा, 25 पैसे की icecream और 25 पैसे का चटपटा चूरन। जो बजट मांगो मिलता कहाँ है, मिलता था कभी 25 पैसे तो कभी 50 पैसे, कभी वो भी नहीं। जितना मिला उस में जो आया खा लिया। जिस दिन नहीं मिला दोस्त के साथ शेयर कर लाया। जिस दिन दोस्त को नहीं मिला उस दिन अपने में से दे दिया।

बड़ा हुआ तो 10-12 हजार रुपये महीने की नौकरी चाहिये थी, मिल गयी। उसके बाद वेतन साल दर साल बढ़ता रहा मगर उस 25 पैसे की icecream और 25 पैसे के चूरन की खुशी दुबारा नहीं मिली। वजह बड़ी स्पष्ट थी लेकिन तब समझ नहीं आयी थी। खुशी असल में चूरन, समोसा, icecream खरीद पाने लायक पैसे होने की नहीं थी, खुशी दोस्त के साथ उस चटपटे चूरन को खाने का पल शेयर करने की थी। 

दोस्तों जब पता लग जाये कि कितना पैसा बहुत होता है तब लक्ष्य बना कर दौड़िये, लेकिन अगर ये न पता हो तो पैसे के पीछे भागने में खुश रहना, स्वस्थ रहना न भूल जाइयेगा।

P.S. किसी किसी दिन दोनों दोस्तों को पैसा नहीं मिलता था। उस दिन दोनों दोस्त चूरन या icecream खाने वालों को देख कर बोलते कि यार ये सब खाने से पेट गड़बड़ हो जाता है। एक-दूसरे को यह बात समझा कर हम उन बच्चों के साथ खेलने दौड़ जाते जो बिना चूरन भी खुश थे। चूरन खाने वाले भी खुश थे, न खाने वाले भी खुश थे।

Published
Categorized as Blog

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *